SSC Exam Center की दूरी और तकनीकी खामियों ने लाखों स्टूडेंट्स को परेशान कर रखा है। विशाखन से कटक, लखनऊ से पटना तक, सेंटर्स की दूरी और लास्ट मिनट बदलाव ने बढ़ाई मुश्किलें। SSC चेयरमैन एस गोपाल कृष्णन ने खुलकर बताया कि वे इन समस्याओं को कैसे ठीक कर रहे हैं और स्टूडेंट्स को क्या राहत मिलेगी। पढ़िए पूरी बातचीत और जानिए क्या है SSC का नया प्लान
मुख्य लेख:
देश भर के लाखों स्टूडेंट्स के लिए स्टाफ सिलेक्शन कमीशन यानी SSC का नाम सुनते ही उम्मीदें जागती हैं, लेकिन साथ ही कुछ सवाल भी मन में उमड़ते हैं। SSC के इम्तिहान सेंटर्स की दूरी, गलत सवाल, और तकनीकी खामियों की शिकायतें अक्सर सुर्खियां बनती हैं। कोई विशाखन से 1200 किमी दूर कटक एग्जाम देने जाता है, तो कोई लखनऊ से पटना। स्टूडेंट्स और टीचर्स जब इन शिकायतों को लेकर SSC चेयरमैन या डीओपीटी मिनिस्टर जितेंद्र सिंह से मिलने की कोशिश करते हैं, तो कई बार उन्हें दिल्ली पुलिस डिटेन करती है, बस में घुमाती है, जैसे वे कोई अपराधी हों। लेकिन क्या SSC इन समस्याओं को ठीक करने के लिए कुछ कर रहा है? आइए जानते हैं SSC चेयरमैन एस गोपाल कृष्णन से हुई खास बातचीत से।
SSC Exam Center problem
आप 30 साल से ज्यादा अनुभव वाले IAS अफसर हैं, IIT मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और IIM की डिग्री। जब आपने SSC चेयरमैन का पद संभाला, तो क्या चुनौतियां दिखीं और आपने उन पर क्या किया?
चेयरमैन: SSC का काम तो सब जानते हैं – केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए इम्तिहान कराना। लेकिन हमारा तरीका थोड़ा अलग है। 2018-19 से हम सिर्फ कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट करते हैं, कोई OMR या लिखित पेपर नहीं। पहले TCS हमारे लिए इम्तिहान और सवाल दोनों तैयार करता था, लेकिन 2020 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश (शांतनु कुमार केस) के बाद अब एग्जाम कंडक्टिंग एजेंसी सिर्फ इम्तिहान कराती है, सवाल SSC तैयार करता है। इस साल मई से नई एजेंसी, एडिक्वटी, काम कर रही है।
सवाल: तो अब सवाल कौन बनाता है? क्या AI का इस्तेमाल होता है, जैसा कि कुछ मीडिया में कहा गया?
चेयरमैन: बिल्कुल नहीं! हर सवाल को सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट्स (SMEs) बनाते हैं। एक एक्सपर्ट सवाल बनाता है, दूसरा चेक करता है, फिर तीसरा उसे हिंदी-अंग्रेजी या 15 दूसरी भाषाओं में अनुवाद करता है। 30-31 लोग मिलकर हर सवाल को फाइनल करते हैं। हां, कुछ गलतियां हुईं, जैसे ऑप्शंस का दोहराना या सवाल का जवाब से मेल न खाना। ये गलत है, नहीं होना चाहिए। लेकिन AI इसमें शामिल नहीं है। हम AI का इस्तेमाल सिर्फ ये सुनिश्चित करने के लिए कर रहे हैं कि सवालों का लेवल एक जैसा रहे और दोहराव न हो।
सवाल: स्टूडेंट्स पूछते हैं कि इतने चेक के बाद भी ऑप्शंस में गलतियां कैसे हो जाती हैं? स्कूल-कॉलेज या UPSC के इम्तिहानों में ऐसा तो नहीं होता।
चेयरमैन: सही बात है, ये गलतियां नहीं होनी चाहिए। हमारा सिस्टम डिजिटल है, सवाल इम्तिहान से कुछ मिनट पहले ही तैयार होते हैं, ताकि पेपर लीक की कोई गुंजाइश न रहे। 2019 के बाद SSC का कोई पेपर लीक नहीं हुआ। लेकिन गलत सवालों को ठीक करने के लिए हमारा चैलेंज मैकेनिज्म है। हर स्टूडेंट इम्तिहान के बाद अपने सवाल और जवाब देख सकता है, गलती बताने के लिए ₹100 जमा करने होते हैं। अगर गलती सही पाई जाती है, तो उस सवाल को सभी कैंडिडेट्स के लिए हटा दिया जाता है।
सवाल: लेकिन अगर गलती SSC की है, तो स्टूडेंट्स से ₹100 क्यों? कॉरपोरेट्स तो सॉफ्टवेयर में बग बताने पर रिवॉर्ड देते हैं!
चेयरमैन: सही सवाल है। ₹100 इसलिए, ताकि बेकार के चैलेंज कम हों, वरना लाखों लोग चैलेंज करेंगे और प्रक्रिया में देरी होगी। लेकिन अगर चैलेंज सही निकलता है, तो रिफंड का डिमांड जायज है। हम इस पर काम कर रहे हैं। सरकारी नियमों के कारण रिफंड की प्रक्रिया जटिल है, क्योंकि पैसा कंसोलिडेटेड फंड में जाता है। लेकिन हम इसे आसान करने की कोशिश करेंगे।
सवाल: सेंटर्स की दूरी भी बड़ी समस्या है। विशाखन से कटक (1200 किमी), लखनऊ से पटना, कोलकाता से रांची – इतनी दूर क्यों? 200-300 किमी में सेंटर्स दे सकते हैं न?
चेयरमैन: ये ट्रांजिशनल प्रॉब्लम है। पहले बड़े शहरों में सेंटर्स थे, अब छोटे शहरों में भी देने की कोशिश कर रहे हैं। हाल के स्टेनो एग्जाम में 80% कैंडिडेट्स को उनकी पहली, दूसरी या तीसरी पसंद का सेंटर दिया। बाकी 20% को औसतन 200 किमी दूर। हम इसे और कम करेंगे, ताकि हर स्टूडेंट को नजदीकी और भरोसेमंद सेंटर मिले।
सवाल: लास्ट मिनट सेंटर चेंज की शिकायतें भी हैं। जैसे, लखनऊ की मीना को पहले सेंटर बताया, फिर 10 किमी दूर दूसरा सेंटर, और वो समय पर नहीं पहुंच पाईं। ऐसे में क्या करेंगे?
चेयरमैन: ये नहीं होना चाहिए। अगर सेंटर में कोई दिक्कत है, जैसे भागलपुर में बाढ़ की वजह से सेंटर बदला, तो हम SMS और फोन से सूचित करते हैं। अगर कोई स्टूडेंट छूट जाता है, तो उसे दोबारा मौका देंगे। हाल के एग्जाम में 16,000 स्टूडेंट्स को दोबारा मौका दिया गया, क्योंकि उनकी तकनीकी दिक्कत थी।
सवाल: कुछ सेंटर्स में माउस हैंग होना, एग्जाम लेट शुरू होना जैसी शिकायतें हैं। इसे कैसे ठीक करेंगे?
चेयरमैन: ये सेंटर मैनेजमेंट की समस्या है। हम लॉग एनालिसिस करते हैं। अगर किसी स्टूडेंट को कम समय मिला, तो उसे दोबारा मौका देंगे। हाल के एग्जाम में एक सेंटर में देरी हुई, लेकिन अगली शिफ्ट्स में इसे ठीक कर लिया गया। हम एजेंसी पर पेनल्टी लगाते हैं, हाल में एक एजेंसी पर करोड़ों की पेनल्टी लगाई गई।
सवाल: आधार ऑथेंटिकेशन की भी शिकायतें हैं। पुरानी फोटो की वजह से दिक्कत होती है।
चेयरमैन: हमने आधार को आसान किया है। अब मोबाइल से फेस ऑथेंटिकेशन कर सकते हैं। अगर आधार फेल होता है, तो फिंगरप्रिंट लेते हैं, लेकिन किसी को इम्तिहान देने से नहीं रोका जाता। वन-टाइम रजिस्ट्रेशन (OTR) में गलती हुई हो, तो उसे अगस्त में एडिट करने का मौका देंगे।
सवाल: नॉर्मलाइजेशन का मुद्दा भी बार-बार उठता है। ये क्या है और क्यों जरूरी है?
चेयरमैन: जब लाखों स्टूडेंट्स कई शिफ्ट्स में इम्तिहान देते हैं, तो हर शिफ्ट का पेपर अलग होता है। कोई आसान, कोई मुश्किल। इसे बैलेंस करने के लिए नॉर्मलाइजेशन करते हैं। पहले हम एक फॉर्मूला इस्तेमाल करते थे, जो कोर्ट में भी सही माना गया। लेकिन अब इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट की सलाह पर इक्वी परसेंटाइल नॉर्मलाइजेशन अपनाया है, ताकि स्टूडेंट्स पर कम असर पड़े।
सवाल: कुछ सेंटर्स में बाउंसर्स की मारपीट की शिकायतें आईं, जैसे दिल्ली के गुरु हरगोविंद सिंह इंस्टीट्यूट में।
चेयरमैन: बाउंसर्स का कोई रोल नहीं। ऐसा हुआ तो गलत है। हमने साफ कर दिया कि किसी सेंटर में बाउंसर नहीं होने चाहिए। अगर ऐसा हुआ, तो एजेंसी पर सख्त कार्रवाई होगी।
सवाल: स्टूडेंट्स और टीचर्स जब आपसे या मिनिस्टर से मिलना चाहते हैं, तो पुलिस उन्हें डिटेन करती है। क्यों?
चेयरमैन: ये लॉ एंड ऑर्डर का मसला है, दिल्ली पुलिस से पूछिए। लेकिन हमने हर किसी से मुलाकात की। मेरे डायरेक्टर ने तुरंत टीचर्स से बात की। हमें कुछ छिपाना नहीं, हम हर सवाल का जवाब देने को तैयार हैं।
सवाल: इनविजिलेटर्स को ट्रेनिंग की कमी की शिकायत है।
चेयरमैन: ये शुरुआती दिक्कत थी, अब ठीक हो रही है। कुछ इनविजिलेटर्स और कैंडिडेट्स की मिलीभगत पकड़ी गई। अब आधार ऑथेंटिकेशन से पता लग जाता है कि कोई कैंडिडेट और इनविजिलेटर दोनों की भूमिका न निभाए।
सवाल: कहा जाता है कि TCS तकनीकी रूप से बेहतर था, लेकिन एडिक्वटी को कम कीमत की वजह से चुना गया।
चेयरमैन: ऐसा नहीं है। टेंडर प्रक्रिया पारदर्शी है। टीसीएस, एडिक्वटी और दूसरी एजेंसियों का टेक्निकल और फाइनेंशियल मूल्यांकन हुआ। एडिक्वटी ने कॉन्फिडेंशियलिटी के लिए इंक्रिप्टेड सिस्टम दिया। विंडोज की कमजोरी को हमने खास बॉक्स लगाकर ठीक किया, जो हर सेंटर की मशीन को मॉनिटर करता है।
सवाल: क्या SSC अगले एक साल में ऐसा सिस्टम बना सकता है, जिसमें बाहरी एजेंसियों पर निर्भरता कम हो?
चेयरमैन: ये मुश्किल सवाल है। सेंटर्स की वजह से रिस्क रहता है। नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी (NRA) इस पर काम कर रही है। हम डिवाइस-बेस्ड टेस्टिंग की दिशा में बढ़ रहे हैं, ताकि सेंटर्स की जरूरत कम हो। अगले एक साल में कुछ बदलाव की उम्मीद है।
सवाल: क्या आप स्टूडेंट्स को भरोसा दिला सकते हैं कि सीटें लैप्स नहीं होंगी?
चेयरमैन: बिल्कुल! हम स्लाइडिंग सिस्टम ला रहे हैं, जिसमें वैकेंसी खाली नहीं रहेंगी। अगर कोई कैंडिडेट एक पोस्ट नहीं चुनता, तो दूसरा उसका विकल्प ले सकता है। इस साल के एग्जाम्स से इसे लागू करने की कोशिश है।
आखिरी बात:
SSC चेयरमैन एस गोपाल कृष्णन ने भरोसा दिलाया कि वे स्टूडेंट्स की हर शिकायत को गंभीरता से ले रहे हैं। अगर आपको कोई दिक्कत है, तो SSC के पोर्टल पर शिकायत दर्ज करें। लोकतंत्र में सवाल पूछने और जवाब सुनने का हक हमेशा बना रहना चाहिए। अपने सवाल कमेंट बॉक्स में भेजें, हम आपके लिए आवाज उठाते रहेंगे!
थैंक यू!
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