गांव का स्कूल बना मॉडल: आजमगढ़ का प्राइमरी स्कूल, जो प्राइवेट स्कूलों को भी दे रहा टक्कर

By Shekhar

Published On:

Follow Us
Spread the love

नमस्कार। आज हम बात करेंगे प्राइमरी शिक्षा की, खास तौर पर सरकारी प्राइमरी स्कूलों की। बीते कुछ दिनों में आपने खबरों में देखा होगा कि देश में प्राइमरी शिक्षा को लेकर बहस छिड़ी है। राजस्थान में एक जर्जर प्राइमरी स्कूल की छत गिरने से मासूम बच्चों की जान चली गई। वहीं, उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने सरकारी प्राइमरी स्कूलों के मर्जर का फैसला लिया, ताकि शिक्षक-छात्र अनुपात को ठीक किया जाए और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाई जाए। लेकिन जब इस फैसले का विरोध हुआ और परेशानियां सामने आईं, तो सरकार ने कहा कि 1 किलोमीटर से ज्यादा दूरी वाले और 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों का मर्जर नहीं होगा। अगर ऐसा हुआ भी, तो उसे रद्द कर दिया जाएगा।

मैं हाल ही में अपने गृह जनपद आजमगढ़ गया था। वहां इस खबर के बाद मैंने सोचा कि आपको प्राइमरी शिक्षा से जुड़ा एक ऐसा बदलाव दिखाना चाहिए, जो आजमगढ़ के बासूपार गांव में शुरू हुआ है। यह बदलाव न सिर्फ देखने लायक है, बल्कि इस पर चर्चा भी जरूरी है।

कौन पढ़ता है सरकारी प्राइमरी स्कूलों में?


सबसे पहले सवाल उठता है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ता कौन है? मेरे पास कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं, लेकिन मैंने कई स्कूल देखे हैं, और इस स्कूल में भी यही स्थिति है। बासूपार के इस स्कूल में कुल 90 छात्र हैं। इनमें से 80% दलित समाज से हैं, और बाकी में ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के बच्चे। इनके माता-पिता के पास न तो दोपहिया वाहन है, न ही साइकिल। ये वो लोग हैं, जो भूमिहीन हैं, दूसरों की जमीन पर खेती करते हैं या मजदूरी करके गुजारा करते हैं। आय के हिसाब से ये गरीबी रेखा से नीचे हैं।

उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 80% बच्चे दलित या गरीब मुस्लिम समुदाय से हैं। इनके माता-पिता इतने सक्षम नहीं कि बाइक खरीद सकें। अब सोचिए, अगर सरकार 50 की जगह 49 बच्चों की संख्या के आधार पर स्कूल बंद कर दे, तो क्या होगा? यह स्कूल एक व्यस्त सड़क के किनारे है। क्या कोई माता-पिता अपने छोटे बच्चे को 1 किलोमीटर पैदल इस सड़क पर भेज सकता है, जहां बाइक और गाड़ियां तेजी से दौड़ती हैं?

शिक्षकों की भर्ती का सवाल


सवाल ये भी है कि सरकार प्राइमरी शिक्षा को लेकर कितनी गंभीर है? पिछले 7 सालों में उत्तर प्रदेश में प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई। अगर मर्जर का फैसला भर्तियों को रोकने के लिए है, तो फिर बीएड, डीएड और बीटीसी जैसे एग्जाम क्यों कराए जा रहे हैं? बेरोजगारों को शिक्षक बनने का सपना क्यों दिखाया जा रहा है, जब वैकेंसी ही नहीं निकल रही? क्या यूपी में चुनाव से पहले प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती होगी? और ये ट्रेंड, कि चुनाव से पहले भर्तियां निकाल दी जाती हैं, हमें कहां ले जा रहा है?

आजमगढ़ का अनोखा स्कूल


इन सवालों के बीच मैं आपको एक ऐसे स्कूल की सैर करवाता हूं, जिसे देखकर आपकी आंखें चौंधिया जाएंगी। आजमगढ़ के बासूपार गांव में बना प्राथमिक विद्यालय बनकट, अजमतगढ़, एक मिसाल है। क्या सिर्फ शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक करने से शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी? क्या अच्छी बिल्डिंग ही काफी है? क्या स्कूल पास हो तो पढ़ाई अच्छी होगी और दूर हो तो खराब? इन सवालों का जवाब है- नहीं।

इस स्कूल को देखकर लगता है कि अगर सुविधाएं और इच्छाशक्ति हो, तो सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों को भी टक्कर दे सकते हैं। यहां 90% बच्चे गरीब और दलित परिवारों से हैं, लेकिन स्कूल की सुविधाएं देखकर आप हैरान रह जाएंगे।

क्या है खास इस स्कूल में?

  • डाइनिंग टेबल और साफ-सुथरी किचन: यहां बच्चे जमीन पर टाट बिछाकर नहीं, बल्कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हैं। किचन इतनी साफ है कि किसी बड़े शहर के अच्छे घरों को टक्कर दे।
  • सीसीटीवी और एयर कंडीशन: स्कूल के हर कमरे में 16 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। हर क्लासरूम में एसी है, जो प्राइमरी स्कूलों में शायद ही कहीं देखने को मिले।
  • प्रोजेक्टर से पढ़ाई: बच्चे ब्लैकबोर्ड के साथ-साथ प्रोजेक्टर पर भी पढ़ते हैं।
  • लाइब्रेरी और लैपटॉप: कैफी आजमी के नाम पर बनी लाइब्रेरी में बच्चों के लिए किताबों का खजाना है। लैपटॉप भी उपलब्ध हैं, ताकि बच्चे डिजिटल दुनिया से जुड़ सकें।
  • राष्ट्रीय नायकों की प्रेरणा: स्कूल में जगदीश चंद्र बोस, विक्रम साराभाई, सीवी रमन, सुभाष चंद्र बोस जैसे नायकों की तस्वीरें और उनके योगदान की जानकारी दी गई है, ताकि बच्चे प्रेरणा लें।

कैसे हुआ ये बदलाव?


इस स्कूल का कायाकल्प एक ग्राम प्रधान, शिक्षकों और स्थानीय नेताओं की मेहनत का नतीजा है। ग्राम प्रधान अब्दुल वहाब और ब्लॉक प्रमुख मनीष मिश्रा ने इस स्कूल को मॉडल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रधानपति अब्दुल वहाब बताते हैं कि जब वे स्कूल में आए, तो गरीब बच्चों की स्थिति देखकर उनका मन दुखी हुआ। उन्होंने ठान लिया कि इस स्कूल को ऐसा बनाएंगे कि कोई माता-पिता ये न कहे कि उनका बच्चा पैसे की कमी से पढ़ाई नहीं कर पाया।

ब्लॉक प्रमुख मनीष मिश्रा कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन ने उन्हें प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “गांव में भारत बसता है। अगर गरीब का बच्चा पढ़ेगा, तभी देश की तकदीर बदलेगी।” इस स्कूल को बनाने में ग्राम निधि, मनरेगा और स्थानीय नेताओं का सहयोग शामिल रहा।

प्रिंसिपल की जुबानी


स्कूल के प्रिंसिपल धनंजय मिश्रा बताते हैं कि स्कूल के कायाकल्प के बाद दूर-दूर से लोग अपने बच्चों का एडमिशन कराने आ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में 2500 अभिभावक पूछताछ के लिए आए। वे कहते हैं, “हमारे शिक्षक काबिल हैं। बस सुविधाएं और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।”

आगे क्या?


यह स्कूल एक मिसाल है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो सरकारी स्कूलों का चेहरा बदला जा सकता है। लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ बिल्डिंग बना देने या एसी लगा देने से शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी? इसके लिए अभिभावकों को जागरूक करना होगा। शिक्षकों की भर्ती करनी होगी। और सबसे जरूरी, नीतियां जमीन से बनानी होंगी, न कि दिल्ली-लखनऊ के दफ्तरों से।

अगर हर गांव का प्रधान और जनप्रतिनिधि इस तरह की पहल करें, तो सरकारी स्कूलों का ग्राफ फिर से ऊपर जाएगा। आजमगढ़ का यह स्कूल इस बात का सबूत है कि अगर चाह हो, तो बदलाव मुमकिन है।

आपके क्या विचार हैं? क्या हर गांव में ऐसा स्कूल बन सकता है? कमेंट में जरूर बताएं।


Spread the love

Hello I am Chandrashekhar Here will be provided the Google news All the news through internet, social media will be correct as per my knowledge. If you are following any news, then you have to check its satta. The website will not be responsible for it. However, you will have to keep all the news in mind.Here all the news will be delivered to you authentically. This website is only for the educational news and the other news which is useful to the people.

Leave a Comment