
आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबाले ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द हटाने की मांग की, जिससे संवैधानिक विवाद शुरू हो गया। जानें 42वां संविधान संशोधन, आपातकाल, और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ।
संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की मांग: आरएसएस की टिप्पणी से छिड़ी बहस
भारत के संविधान की प्रस्तावना में शामिल धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को लेकर एक बार फिर सियासी और वैचारिक संवैधानिक बहस छिड़ गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने हाल ही में इन शब्दों को हटाने की मांग उठाई है। यह बयान आपातकाल के 50 साल पूरे होने के मौके पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में दिया गया। इस मांग ने न केवल राजनीतिक विवाद मचाया है, बल्कि इसे लेकर देश दो ध्रुवों में बंटता नजर आ रहा है। आइए, इस संवैधानिक मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
Also Read This
- तनवी द ग्रेट: अनुपम खेर की यह फिल्म क्यों है इतनी खास? जानिए पूरी कहानी!
- गाजा में भुखमरी का संकट: 14,000 बच्चों की जान खतरे में, इजराइल पर नरसंहार के आरोप!
- India Pak update-भारत ने रोका पाकिस्तान का पानी, अब क्या होगा? चौंकाने वाले 5 बड़े अपडेट्स!
- Jio का खतरनाक खेल: क्या अंबानी ने पूरे देश को अपनी जेब में डाल लिया?
- UP Basic Education|उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में क्रांतिकारी बदलाव: ‘लर्निंग बाय डूइंग’ से बच्चों का भविष्य संवरेगा!
आरएसएस की मांग और तर्क
दत्तात्रेय होसबाले ने अपने बयान में कहा कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे। ये शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत आपातकाल के दौरान तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा जोड़े गए थे। होसबाले का तर्क है कि ये शब्द बिना संसदीय बहस के शामिल किए गए, जो संवैधानिक प्रक्रिया के खिलाफ था। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे विचार भारत के लिए शाश्वत हैं और क्या इन्हें प्रस्तावना में रखने की जरूरत है।
होसबाले ने आपातकाल (1975-1977) का जिक्र करते हुए कहा कि इस दौरान मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा, और लाखों लोगों को जेल में डाला गया। उन्होंने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए कांग्रेस से आपातकाल के लिए माफी मांगने की मांग की।
42वां संविधान संशोधन: ऐतिहासिक संदर्भ
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और अखंडता शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए थे। इस संशोधन का उद्देश्य था:
- समाजवादी: सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देना, संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना, और गरीबों व कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करना।
- धर्मनिरपेक्ष: सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार और धार्मिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में पहले से ही उल्लिखित है।
हालांकि, आरएसएस का कहना है कि ये शब्द बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा तैयार मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। होसबाले ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद पहले से ही धार्मिक स्वतंत्रता और समानता की गारंटी देते हैं, इसलिए धर्मनिरपेक्ष शब्द की आवश्यकता नहीं थी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ: कांग्रेस और विपक्ष का हमला
होसबाले के बयान ने विपक्ष, खासकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (एसपी), को हमलावर बना दिया है। कांग्रेस ने इसे संविधान के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ और संविधान विरोधी साजिश करार दिया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें 42वें संशोधन की संवैधानिकता को बरकरार रखा गया था।
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने आरएसएस पर तीखा हमला करते हुए कहा कि यह संगठन हिंदुस्तान के बजाय हिंदू राष्ट्र को प्राथमिकता देता है। उन्होंने इसे संविधान के मूल सिद्धांतों को कमजोर करने की कोशिश बताया।
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता लालू प्रसाद यादव ने भी इस मुद्दे पर आरएसएस और बीजेपी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह बयान संविधान और बाबासाहेब अंबेडकर के प्रति घृणा को दर्शाता है। लालू ने जोर देकर कहा कि संविधान की आत्मा समाजवाद और गांधीवाद पर आधारित है, और यह भगत सिंह, राम मनोहर लोहिया, और जेपी मूवमेंट जैसे समाजवादी आंदोलनों से प्रेरित है।
बीजेपी का रुख और समर्थन
बीजेपी की ओर से इस मांग पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। बीजेपी सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने होसबाले के बयान का समर्थन करते हुए इसे सही बताया। वहीं, केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मुद्दे पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी, जिससे बीजेपी की स्थिति अस्पष्ट दिख रही है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बिहार जैसे राज्यों में, जहाँ जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं, यह बयान बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदायक हो सकता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द संविधान की प्रस्तावना को और मजबूत करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले साल 42वें संशोधन की वैधता को बरकरार रखा था। इसके बावजूद, आरएसएस का तर्क है कि ये शब्द आपातकाल के दौरान लोकतंत्र का गला घोंटने की स्थिति में जोड़े गए, जिसे वे असंवैधानिक मानते हैं।
वहीं, कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि संविधान की प्रस्तावना में बदलाव की मांग वैचारिक स्तर पर तो चर्चा का विषय हो सकती है, लेकिन इसे लागू करना बेहद जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील होगा।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
यह बहस अब केवल वैचारिक नहीं रही, बल्कि देश की राजनीति को दो ध्रुवों में बाँट रही है। एक ओर वे लोग हैं जो संविधान की मौजूदा आत्मा को बनाए रखने की वकालत करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे हैं जो इसके मूल स्वरूप की बहाली चाहते हैं। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा गर्म है, जहाँ कुछ लोग आरएसएस की मांग का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ इसे संविधान पर हमला बता रहे हैं।
आगे क्या?
यह विवाद जल्द खत्म होने वाला नहीं है। आरएसएस की मांग ने न केवल संवैधानिक बहस को जन्म दिया है, बल्कि यह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव और अन्य राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। कांग्रेस और विपक्ष इस मुद्दे को बीजेपी के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि बीजेपी इस पर सावधानी से कदम बढ़ा रही है।
निष्कर्ष
संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को लेकर छिड़ी यह बहस भारत के लोकतांत्रिक और वैचारिक ढांचे के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। यह न केवल संविधान के मूल स्वरूप और उसके संशोधनों पर सवाल उठाती है, बल्कि देश की एकता और विविधता को बनाए रखने की चुनौती को भी सामने लाती है। इस मुद्दे पर खुली और स्वस्थ चर्चा की जरूरत है, ताकि सभी पक्षों के विचारों को सुना जा सके और संविधान की आत्मा को मजबूत किया जा सके।
आप इस संवैधानिक विवाद* पर क्या सोचते हैं? नीचे कमेंट में अपनी राय साझा करें और इस लेख को शेयर करें ताकि यह चर्चा और लोगों तक पहुँचे!
- भारतीय संविधान
- संविधान की प्रस्तावना
- धर्मनिरपेक्ष
- समाजवादी
- आरएसएस
- दत्तात्रेय होसबाले
- 42वां संविधान संशोधन
- आपातकाल
- बाबासाहेब अंबेडकर
- कांग्रेस
- समाजवादी पार्टी
- बिहार विधानसभा चुनाव
- संवैधानिक विवाद
- धर्मनिरपेक्षता
- समाजवाद
- सुप्रीम कोर्ट
- इंदिरा गांधी
- लोकतंत्र

Hello I am Chandrashekhar Here will be provided the Google news All the news through internet, social media will be correct as per my knowledge. If you are following any news, then you have to check its satta. The website will not be responsible for it. However, you will have to keep all the news in mind.Here all the news will be delivered to you authentically. This website is only for the educational news and the other news which is useful to the people.